महेश्वर का पौराणिक महत्व और इतिहास महेश्वर के अत्यंत गौरवशाली पौराणिक इतिहास के कारण ही देवी अहिल्या ने महेश्वर को राजधानी बनाया था |
इसके पूर्व महत्वपूर्ण इतिहास में यह शहर पंडित मंडन मिश्र वह उनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती देवी की विद्वता से प्रकाशित हुआ करता था व जाना जाता था | फिर इसी स्थान पर जगतगुरु आदि शंकराचार्य से उनके शास्त्रार्थ का गवाह बना व सनातन धर्म को उत्तम दिशा दी । कुछ मतों में बालक शंकर के शंकराचार्य बनने का स्थान भी यही है , जब उन्होंने शास्त्रार्थ में पंडित मंडन मिश्र व उनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती देवी को पराजित किया था | वेद, पुराण उपनिषद, ( वायु पुराण, नर्मदा पुराण , स्कंद पुराण इत्यादि में वर्णित महिष्मति नगरी ही महेश्वर हे |
हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन उसकी 500 रानियों की कथा बड़ी रोचक हे राजा सहस्त्रार्जुन बड़े ही बली थे उनके हजार हाथ थे जिनसे वे नंदा की धारा को रोकने की सामर्थ्य रखते थे, लंका के राजा रावण से उनका युध्ध हुआ था | सहस्त्रार्जुन ने रावण को हराकर कैद कर लिया था | इस इतिहास में यहां रावणेश्वर महादेव का मंदिर बना और विश्वविख्यात राज राजेश्वर महादेव का मंदिर भी है ।
देवाधीदेव महादेव की पुत्री माँ नर्मदा के पवित्र तट पर बसे महेश्वर को अपनी विलक्षणता के कारण ही गुप्तकाशी के नाम से भी जाना जाता है।
"ईश्वर ने मुझ पर जो जिम्मेदारी सौंपी है, मुझे उसे निभाना है।
प्रजा को सुखी रखने व उनकी रक्षा का भार मुझ पर है।
सामर्थ्य व सत्ता के बल पर मैं जो कुछ भी यहाँ कर रही हूँ, उस हर कार्य के लिए मैं जिम्मेदार हूँ ......पूरा पढ़िए |
प्राचीन भारतीय निर्माण कला , युद्ध कौशल और रक्षा निति का एक उत्तम उदाहरण हे महेश्वर का किला | लगभग २ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सुरक्षा देने वाले इस किले के निर्माण का समय 4थी से 5वीं शताब्दी के मध्य का आंका जाता है | किले के ......पूरा पढ़िए |
महेश्वर मंदिरों और देवालयों का नगर है | यहाँ शिव मंदिर बहुतायत से हैं | इसी कारण यहाँ निवास करना संत तपस्वी गण पसंद करते हैं , इसे "गुप्त काशी " भी कहा जाता है | यहाँ के मुख्य मंदिरों में श्री राजराजेश्वर मंदिर, काशी-विश्वनाथ , अहिल्येश्वर महादेव , ज्वालेश्वर ......पूरा पढ़िए |